प्रदेश में चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा। यह कहना अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन मुख्यमंत्री के सत्ता वापसी के बहुतेरे जतन के बीच अभी जनता खुद में ही मगन नजर आ रही है।


राजस्थान विधानसभा चुनाव में अब 6 माह भी शेष नहीं हैं। ऐसे में राज्य में दोनों प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस व भाजपा के साथ ही अन्य दल बसपा, रालोपा, सपा, आप व रालोद भी अब चुनावी मोड़ में आ चुके हैं। वहीं राज्य में सत्ता वापसी के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बहुतेरे जतन कर रहे हैं। मुख्यमंत्री गहलोत अपनी कांग्रेस सरकार की विभिन्न योजनाओं का हर जगह खूब बखान कर रहे हैं। मुख्यमंत्री गहलोत ने जनता को अपने पक्ष में करने के प्रदेश में 19 नए जिलों की ब्रह्मास्त्र रूपी घोषणा की। हालांकि जयपुर सहित कई जिलों में क्षेत्र के बटवारे को लेकर अंसतोष भी लोगों में पनपा। मुख्यमंत्री गहलोत प्रदेश के लगभग सभी जिलों में हवाई दौरा कर चुके हैं। नवगठित जिलों में भी पहुंचकर लोगों को विकास रूपी होने वाले लाभ गिना रहे हैं। ऐसे में वे जनता के बीच लोक-लुभावन घोषणाओं के साथ ही योजनाओं का शिलान्यास व उद्घाटन भी जमकर कर रहे हैं।
पार्टी में पनपे अंसतोष को थामने और विभिन्न वर्गों को साधने के लिए मुख्यमंत्री गहलोत विभिन्न बोर्ड व अकादमियों के गठन के साथ ही उनमें तथा राज्य-जिला स्तरीय समितियों में राजनीतिक नियुक्तियां कर कार्यकर्ताओं को खुश रखने का प्रयास कर रहे हैं। युवा व बेरोजगारों के लिए मेगा जॉब फेयर लगाए तो महिलाओं के लिए 500 रुपए में गैस सिलेण्डर देने की घोषणा की।
‘आप मांगते-मांगते थक जाओगे, मैं देते-देते नहीं थकूंगा’ मुख्यमंत्री गहलोत ने यह कहकर विधायकों को संतुष्ट रखने का प्रयास किया है। मुख्यमंत्री सार्वजनिक मंचों पर भी गाहे-बगाहे जनता को यह बताते रहते हैं कि आपके विधायक को मैंने वह भी दिया, जो उसने मांगा ही नहीं था। इसका कारण बताते हुए गहलोत यह भी कहते नहीं थकते कि जनता का उनसे ज्यादा हितैषी कोई नहीं है।
कला व साहित्य को प्रोत्साहित करने के लिए भी सीएम गहलोत ने कई प्रोत्साहन पुरस्कारों की घोषणा की है तो पिछले दो साल से किसानों के लिए अलग से बजट पेश कर रहे हैं।
हालत ऐसी है कि बजट से भी ज्यादा घोषणाएं तो अब वे विभिन्न जिलों के हवाई दौरे में कर रहे हैं। ये घोषणाएं धरातल पर कितनी कारगर व क्रियान्वित होंगी या फिर हवा-हवाई होकर रह जाएंगी, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
रीट में चीट जैसे मामले में किरकिरी झेल रही गहलोत सरकार अब और ज्यादा दागदार होने से शायद परहेज कर रही है। तभी तो महिलाओं को स्मार्ट फोन देने का मामला हो या फिर विद्यार्थियों को टेबलेट। लम्पी प्रभावित किसानों का मामला हो या फिर सीएम अन्नपूर्णा योजना में फूड पैकेट देने का मामला। ऐसी योजनाओं में सरकार अब नकद राशि लाभार्थी के बैंक खाते में ट्रांसफर कर खुद को पाक-साफ साबित करने का जतन कर रही है। मंहगाई राहत शिविर लगाने के साथ ही कई अन्य योजनाओं में फ्री बिजली, श्रमिक सम्बल योजना आदि से भी लोगों को राहत देने का जतन किया जा रहा है। सरकारी कर्मचारियों के लिए उन्होंने कई घोषणाएं की है, जिनमें वर्ष 2004 के बाद नियुक्त कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना को लागू करना बड़ी घोषणा है।
इस तरह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के राज्य में सत्ता वापसी के लिए किए जा रहे बहुतेरे जतन कितने कारगर साबित हो सकेंगे, यह तो आने वाले चुनाव के नतीजों के बाद ही तय हो सकेगा, लेकिन फिलहाल वे सत्ता वापसी के लिए कोई कोर-कसर बाकी छोडऩा नहीं चाहते। मुख्यमंत्री गहलोत विभिन्न योजना के साथ ही राहत इन कैश के प्रचार-प्रसार में भी जी-जान से जुटे हैं और इसके लिए इलैक्ट्रोनिक व प्रिंट मीडिया के साथ ही सोशल मीडिया का भी सहारा ले रहे हैं।
राजस्थान के हर नागरिक पर करीब एक लाख रुपए का कर्ज भार है। राज्य की जनता पर इस बार के बजट के साथ करीब 6 लाख करोड़ रुपए का कर्जा हो चुका है, जिसे ब्याज सहित देखा जाए तो इस वर्ष के अंत तक यह करीब 7 लाख करोड़ रुपए होगा। राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी-कुल कमाई) का यह लगभग 36.56 प्रतिशत है। फिर भी सत्ता वापसी की चिंता में मुख्यमंत्री गहलोत यह भी भूले बैठे हैं कि उनकी ओर से की जा रही घोषणाओं के लिए आवश्यक बजट की व्यवस्था होगी कैसे?
राजस्थान में मुख्यमंत्री गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच अगर कांग्रेस आलाकमान समय रहते सामंजस्य नहीं बना पाया तो कांग्रेस को उसका खामियाजा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। राजस्थान में कांग्रेस की सत्ता व संगठन में पिछले कई साल से चल रही खींचतान किसी से छिपी नहीं है। एक-दूसरे को बौना साबित करने की जद्दोजहद में बदजुबानी भी हर किसी ने सुनी है। अतिथि देवो भव: की संस्कृति के पोषक राजस्थान में मान-मर्यादा को तार-तार होते भी लोगों ने देखा है। बेलगाम तंत्र का अमर्यादित आचरण भी जगजाहिर होता रहा है तो खादी-खाकी का गठजोड़ भी किसी से छिपा नहीं है। प्रदेश में फिलहाल दूसरी ओर देश में सबसे बड़ी भारतीय जनता पार्टी में भी कम गुटबाजी नहीं है। प्रदेश की दो बार मुख्यमंत्री रह चुकीं वसुंधरा राजे को पार्टी में राष्ट्रीय नेतृत्व चाहे पसंद नहीं करता हो, लेकिन प्रदेश में उनकी अनदेखी भाजपा के लिए जी का जंजाल बन सकती है। इसी के मद्देनजर भाजपा राजस्थान में फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। कर्नाटक चुनाव के नतीजे ने तो भाजपा को राजस्थान में सोच पर मजबूर सा कर दिया है।
ऐसे में जनता अभी पूरी तरह से मौन रहकर तमाशा देख रही है। प्रदेश में चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा। यह कहना अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन मुख्यमंत्री के सत्ता वापसी के बहुतेरे जतन के बीच अभी जनता खुद में ही मगन नजर आ रही है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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